ग्रीन दिवाली में पटाखों की जगह दीयों, पौधों और स्वदेशी सजावट से त्योहार मनाया जाता है
Green Diwali: दीपावली रोशनी, उत्साह और खुशियों का त्योहार है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में इस त्योहार पर पटाखों और प्रदूषण ने त्योहारी उमंग को धुएं में धुंधला कर दिया। इसी सोच से निकला है एक सुंदर विचार “ग्रीन दिवाली”। ग्रीन दिवाली का मतलब है ऐसा त्योहार जो उत्सव के साथ-साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखे।

इस दिवाली पर लोग पटाखों के धुएं और शोर से दूर, मिट्टी के दीयों, सोलर लाइटों, स्वदेशी सजावट और पेड़-पौधों से घर को रोशन करते हैं। इससे न केवल हवा और ध्वनि प्रदूषण कम होता है, बल्कि त्योहार में प्राकृतिक खुशबू और शांति भी घुल जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, दीपावली के समय पटाखों से निकलने वाला धुआं हवा में विषाक्त गैसों को बढ़ा देता है। इसका असर बुजुर्गों, बच्चों और अस्थमा के मरीजों पर सबसे ज़्यादा पड़ता है। इसीलिए सरकार और पर्यावरण संगठन भी ‘ग्रीन दिवाली’ को बढ़ावा दे रहे हैं।
कैसे मनाएं ग्रीन दिवाली? (How to celebrate Green Diwali?)
- मिट्टी के दीये और सोलर लाइटों से घर सजाएं।
- उपहार में पौधे या पर्यावरण-अनुकूल चीजें दें।
- प्लास्टिक की जगह पेपर और फैब्रिक रैपिंग का इस्तेमाल करें।
- स्वच्छता और रिसाइकलिंग को प्राथमिकता दें।
- पटाखों से परहेज कर जरूरतमंदों की मदद में पैसा लगाएं।
पर्यावरण ही नहीं, स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद
ग्रीन दिवाली न केवल प्रदूषण कम करती है बल्कि स्वच्छ हवा, कम शोर और सुरक्षित माहौल भी देती है। डॉक्टरों का मानना है कि इस पहल से बच्चों और बुजुर्गों में सांस की बीमारियों का खतरा काफी कम होता है।
‘वोकल फॉर लोकल’ से जुड़ी ग्रीन दिवाली
स्वदेशी दीये और लोकल सजावट अपनाकर ग्रीन दिवाली न केवल पर्यावरण बचाती है बल्कि स्थानीय कारीगरों, महिलाओं और कुटीर उद्योगों को भी रोजगार देती है। यही कारण है कि सरकार और कई राज्य ग्रीन दिवाली को मिशन मोड में आगे बढ़ा रहे हैं।
